दिवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, भारत के प्रमुख और सबसे प्राचीन त्यौहारों में से एक है। यह त्यौहार न केवल हिंदू धर्म से जुड़ा है, बल्कि जैन, सिख, और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी विशेष महत्व रखता है। दिवाली का अर्थ है “दीपों की पंक्ति,” और इसे “प्रकाश का पर्व” भी कहा जाता है।
यह त्यौहार कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है, जब अंधकार में डूबे हुए संसार को दीपों की रोशनी से प्रकाशमान किया जाता है। इस निबंध में हम दिवाली के ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
दिवाली का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
दिवाली का त्यौहार मुख्यतः भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ा हुआ है। रामायण के अनुसार, भगवान राम 14 वर्षों के वनवास और रावण के वध के बाद अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत के लिए अयोध्यावासियों ने अपने घरों और गलियों को दीपों से सजाया था। यह दिन अयोध्यावासियों के लिए अत्यंत हर्षोल्लास का दिन था, और तब से इस दिन को दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा।
इसके अलावा, दिवाली का संबंध अन्य धार्मिक कथाओं से भी है। जैसे कि, इस दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था। जैन धर्म में दिवाली का महत्व भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में है। सिख धर्म में, इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब गुरु हरगोबिंद सिंह जी को मुगल बादशाह जहांगीर की कैद से रिहा किया गया था। बौद्ध धर्म में भी दिवाली का महत्व है, जिसे सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के रूप में मनाया जाता है।
दिवाली की परंपराएँ और रीति-रिवाज
दिवाली के त्यौहार को मनाने की प्रक्रिया कई दिनों तक चलती है और इसके विभिन्न चरण होते हैं। त्यौहार की शुरुआत “धनतेरस” से होती है। इस दिन लोग नए बर्तन, सोने-चांदी के आभूषण, और अन्य कीमती वस्तुएँ खरीदते हैं। धनतेरस के दिन, भगवान धनवंतरि और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि के देवता माने जाते हैं।
दूसरे दिन को “नरक चतुर्दशी” या “छोटी दिवाली” कहा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और 16,000 कन्याओं को उसके बंदीगृह से मुक्त कराया था। इस दिन लोग सुबह स्नान करते हैं और शरीर पर तेल मलते हैं, जिसे “अभ्यंग स्नान” कहा जाता है। यह क्रिया स्वास्थ्य और शुद्धता का प्रतीक मानी जाती है।
तीसरे दिन को “मुख्य दिवाली” कहा जाता है, जब लक्ष्मी पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और उन्हें दीयों, मोमबत्तियों, और रंगोलियों से सजाते हैं। परिवार के सभी सदस्य नए कपड़े पहनते हैं और लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं। इस दिन पटाखे फोड़ना भी दिवाली की एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ ही, लोग एक दूसरे को मिठाइयाँ और उपहार देते हैं।
चौथे दिन को “गोवर्धन पूजा” या “अन्नकूट” कहा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की थी। लोग इस दिन अपने घरों में अन्नकूट बनाते हैं और भगवान को भोग लगाते हैं। गोवर्धन पूजा विशेष रूप से उत्तर भारत में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है।
पांचवें दिन को “भाई दूज” कहा जाता है, जब बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं। भाई इस दिन अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनके प्रति अपने स्नेह का इज़हार करते हैं। यह दिन भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।
दिवाली का सांस्कृतिक महत्व
दिवाली का त्यौहार सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह त्यौहार भारत की सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट करता है। इस दिन लोग पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं, घरों को सजाते हैं, और पारंपरिक मिठाइयाँ और पकवान बनाते हैं। विशेष रूप से मिठाइयों का महत्व इस दिन अधिक होता है। लड्डू, बर्फी, जलेबी, गुझिया आदि जैसी मिठाइयाँ हर घर में बनाई जाती हैं।
इसके अलावा, दिवाली के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। रामलीला का मंचन, जिसमें भगवान राम की कथा का प्रदर्शन किया जाता है, इस समय के दौरान विशेष आकर्षण होता है। विभिन्न स्थानों पर मेले भी लगते हैं, जहाँ लोग अपने परिवार के साथ घूमने जाते हैं और त्यौहार का आनंद लेते हैं।
दिवाली के अवसर पर रंगोली बनाने की भी परंपरा है। रंगोली, विभिन्न रंगों के पाउडर से बनी होती है और इसे घर के आंगन या मुख्य द्वार पर सजाया जाता है। यह न केवल सजावट का हिस्सा होती है, बल्कि यह सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक भी मानी जाती है।
दिवाली का सामाजिक महत्व
दिवाली का त्यौहार सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह त्यौहार समाज में प्रेम, भाईचारा, और एकता का संदेश फैलाता है। इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं, और पुरानी रंजिशों को भूलकर एक नई शुरुआत करते हैं। इस त्यौहार का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि यह लोगों को अपने घर और आस-पास की सफाई करने के लिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही, लोग अपने आसपास के गरीबों और जरूरतमंदों की मदद भी करते हैं, जिससे समाज में सामंजस्य और समानता का भाव उत्पन्न होता है।
दिवाली के समय लोग एक दूसरे के साथ अपने सुख-दुःख साझा करते हैं और अपने संबंधों को मजबूत करते हैं। इस त्यौहार का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह हमें हमारे परिवार और समाज के प्रति हमारे कर्तव्यों का स्मरण कराता है। दिवाली हमें यह सिखाती है कि हमें अपने रिश्तों को संजोना चाहिए और समाज में सद्भावना बनाए रखनी चाहिए।
दिवाली का आर्थिक महत्व
दिवाली का त्यौहार आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस समय बाजारों में रौनक छाई रहती है और लोग खूब खरीदारी करते हैं। नए कपड़े, आभूषण, घरेलू सामान, और उपहारों की बिक्री में इस दौरान काफी वृद्धि होती है। व्यापारी वर्ग के लिए यह समय अत्यधिक लाभदायक होता है। दिवाली के समय कई छोटे और बड़े व्यवसाय भी उभरते हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करते हैं।
इसके अलावा, दिवाली के समय लोग अपने घरों की मरम्मत और सजावट करवाते हैं, जिससे निर्माण और सजावट से संबंधित व्यवसायों को भी फायदा होता है। इस समय आतिशबाजी और मिठाइयों का भी बड़ा कारोबार होता है। हालांकि, हाल के वर्षों में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए, पर्यावरण के अनुकूल दिवाली मनाने पर जोर दिया जा रहा है, जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी यह त्यौहार सुरक्षित रह सके।
दिवाली का पर्यावरणीय प्रभाव
दिवाली के समय पटाखे फोड़ने की परंपरा रही है, जो त्यौहार के आनंद को बढ़ाती है। लेकिन पटाखों के कारण वायु और ध्वनि प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। पटाखों के जलने से न केवल हवा में जहरीले धुएं का स्तर बढ़ता है, बल्कि ध्वनि प्रदूषण से भी अनेक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इसलिए, आजकल पर्यावरण के अनुकूल दिवाली मनाने पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा इस दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे कि ग्रीन पटाखों का उपयोग, जो कम प्रदूषण करते हैं। इसके अलावा, लोग अब दीयों और मोमबत्तियों का अधिक प्रयोग कर रहे हैं और घरों को प्राकृतिक तरीकों से सजाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे पर्यावरण को कम नुकसान हो।
निष्कर्ष
दिवाली का त्यौहार हमारे जीवन में हर्ष, उल्लास, और समृद्धि का प्रतीक है। यह त्यौहार हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, और असत्य से सत्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।
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