भगवान विष्णु, जिन्हें सनातन धर्म में संरक्षण और पालन का देवता माना जाता है, हिन्दू धर्म के त्रिदेवों में से एक हैं। भगवान विष्णु का मुख्य कार्य संसार की रक्षा करना और अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना है। उन्होंने समय-समय पर धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए विभिन्न अवतार धारण किए।
विष्णु के यह अवतार “दशावतार” के नाम से प्रसिद्ध हैं। हालांकि पुराणों में विष्णु के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन मुख्यतः दस अवतारों का उल्लेख होता है। इनमें से हर अवतार का विशेष उद्देश्य और महत्व है। इन दस अवतारों के नाम और उनके उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
1. मत्स्य अवतार (Matsya Avatar)
भगवान विष्णु का पहला अवतार मत्स्य (मछली) के रूप में माना जाता है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने एक छोटी मछली का रूप धारण किया। यह अवतार सतयुग में हुआ था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य प्रलय के समय मनु की रक्षा करना था।
कथा के अनुसार, एक बार जब प्रलय आने वाला था, तो भगवान विष्णु ने मत्स्य का रूप धारण कर मनु को बताया कि वह एक नाव तैयार करें और उसमें सभी जीवों के बीज, सप्तऋषि और वेदों को रखें। जब प्रलय आया, तो मत्स्य भगवान ने उस नाव को अपने सींग पर उठाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और इस प्रकार जीवन को पुनः स्थापित किया।
2. कूर्म अवतार (Kurma Avatar)
भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कूर्म (कच्छप) के रूप में था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य समुद्र मंथन में मंदराचल पर्वत को स्थिर रखना था। जब देवताओं और असुरों ने अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया, तो मंदराचल पर्वत डगमगाने लगा। तब भगवान विष्णु ने कच्छप रूप धारण किया और पर्वत को अपनी पीठ पर उठा लिया। इससे समुद्र मंथन सफलतापूर्वक संपन्न हो सका और अमृत की प्राप्ति हुई।
3. वराह अवतार (Varaha Avatar)
वराह अवतार में भगवान विष्णु ने एक विशाल वराह (सूअर) का रूप धारण किया। यह अवतार सतयुग में हुआ था। हिरण्याक्ष नामक असुर ने पृथ्वी को पाताल लोक में ले जाकर छिपा दिया था। तब भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण कर समुद्र में डुबकी लगाई और पृथ्वी को अपनी दांतों पर उठाकर उसे पुनः स्थान पर स्थापित किया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा की और अधर्म का नाश किया।
4. नृसिंह अवतार (Narasimha Avatar)
भगवान विष्णु का चौथा अवतार नृसिंह के रूप में था, जो आधा मनुष्य और आधा सिंह के रूप में था। यह अवतार सतयुग में हुआ था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य भक्त प्रह्लाद की रक्षा और उसके पिता हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का अंत करना था।
हिरण्यकशिपु ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि उसे न कोई मनुष्य मार सकता है, न कोई पशु, न ही दिन में और न ही रात में, न ही घर के भीतर और न ही बाहर, न ही आकाश में और न ही भूमि पर।
इस वरदान के घमंड में आकर उसने अत्याचार करना शुरू कर दिया। तब भगवान विष्णु ने नृसिंह का रूप धारण कर संध्या समय में (जो न दिन था, न रात), उसे अपने गोद में रखकर (जो न आकाश था, न भूमि) अपने नखों से (जो न अस्त्र था, न शस्त्र) उसका वध किया।
5. वामन अवतार (Vamana Avatar)
वामन अवतार में भगवान विष्णु ने एक बौने ब्राह्मण का रूप धारण किया। यह अवतार त्रेता युग में हुआ था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य राजा बलि के घमंड का नाश करना और देवताओं को उनका अधिकार वापस दिलाना था। राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था और उसने यज्ञ किया जिसमें भगवान विष्णु ने वामन रूप में आकर बलि से तीन पग भूमि मांग ली
बलि ने वामन को तीन पग भूमि देने का वचन दिया। तब वामन ने अपने पहले पग से धरती को नाप लिया, दूसरे पग से आकाश को और तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर अर्पित कर दिया। भगवान विष्णु ने बलि के दान से प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का राजा बना दिया और उसके घमंड का नाश किया।
6. परशुराम अवतार (Parashurama Avatar)
परशुराम अवतार में भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण के रूप में जन्म लिया, जो क्षत्रियों के अत्याचार का नाश करने के लिए हुआ। यह अवतार त्रेता युग में हुआ था। परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि के आदेश पर क्षत्रियों का विनाश किया। उनके पास भगवान शिव का दिया हुआ परशु (फरसा) था, जिसे वे हमेशा अपने साथ रखते थे। परशुराम ने धरती से 21 बार क्षत्रियों का संहार किया और इस प्रकार अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की।
7. राम अवतार (Rama Avatar)
भगवान विष्णु का सातवां अवतार श्री राम के रूप में हुआ। यह अवतार त्रेता युग में हुआ था। श्री राम का जीवन “रामायण” महाकाव्य में वर्णित है। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य राक्षसराज रावण का वध करना और धर्म की स्थापना करना था। श्री राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे और उन्होंने अपने जीवन में कई आदर्श स्थापित किए। उनकी पत्नी सीता का हरण रावण ने किया था, जिसे छुड़ाने के लिए श्री राम ने वानरों की सेना के साथ लंका पर आक्रमण किया और रावण का वध कर सीता को मुक्त कराया।
8. कृष्ण अवतार (Krishna Avatar)
कृष्ण अवतार भगवान विष्णु का आठवां और सबसे महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है। यह अवतार द्वापर युग में हुआ था। श्री कृष्ण का जीवन “महाभारत” महाकाव्य और “श्रीमद्भगवद्गीता” में वर्णित है। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य कंस, जरासंध और अन्य अधर्मियों का नाश करना था।
भगवान कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया और अर्जुन को गीता का उपदेश देकर धर्म का मार्ग दिखाया। उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाकर अपने भक्तों की रक्षा की और रासलीला के माध्यम से प्रेम और भक्ति का संदेश दिया।
9. बुद्ध अवतार (Buddha Avatar)
बुद्ध अवतार में भगवान विष्णु ने गौतम बुद्ध के रूप में जन्म लिया। यह अवतार कलियुग के आरंभ में हुआ था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य अहिंसा और करुणा का संदेश देना और वेदों के अज्ञानता से भटके हुए लोगों को सन्मार्ग पर लाना था। भगवान बुद्ध ने लोगों को अज्ञानता, अंधविश्वास, और हिंसा से मुक्त होने की शिक्षा दी। उनका उपदेश चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग पर आधारित था, जो कि जीवन के दुखों से मुक्ति का मार्ग है।
10. कल्कि अवतार (Kalki Avatar)
भगवान विष्णु का दसवां अवतार कल्कि के रूप में होगा, जो अभी घटित नहीं हुआ है। यह अवतार कलियुग के अंत में होगा। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य अधर्म का पूर्ण नाश करना और सत्ययुग की स्थापना करना होगा। पुराणों के अनुसार, कल्कि एक सफेद घोड़े पर सवार होंगे, उनके हाथ में तलवार होगी, और वे पृथ्वी पर फैले पाप, अत्याचार, और अधर्म का नाश करेंगे। कल्कि अवतार के साथ ही कलियुग का अंत होगा और सत्ययुग की स्थापना होगी।
निष्कर्ष
भगवान विष्णु के दशावतारों का प्रत्येक अवतार एक विशेष उद्देश्य और महत्व रखता है। ये अवतार विभिन्न युगों में धरती पर धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए हुए हैं। हर अवतार ने अपने समय के संकटों का समाधान किया और मानवता को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
भगवान विष्णु के इन अवतारों की कथाएँ हमें यह सिखाती हैं कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है, तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर धर्म की स्थापना करते हैं। इनके द्वारा दिखाए गए मार्ग और आदर्श आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक हैं और हमें सही दिशा में चलने की प्रेरणा देते हैं।
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