मकर संक्रांति पर निबंध
मकर संक्रांति भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो हर वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। मकर संक्रांति को ‘संक्रांत’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना’।
यह दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार एक महत्वपूर्ण तिथि है, क्योंकि यह दिन धरती पर उत्तरायण (उत्तर दिशा की ओर बढ़ने) की शुरुआत का प्रतीक है। मकर संक्रांति के दिन से ही दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं, जो सुख, समृद्धि और जीवन की नई शुरुआत का प्रतीक है।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर आते हैं। शनि देव को मकर राशि का स्वामी माना जाता है, इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है, और इसे शुभ समय माना जाता है।
भारत के विभिन्न भागों में मकर संक्रांति के अवसर पर स्नान का महत्व बताया गया है। विशेषकर गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों में स्नान को अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति के साथ जुड़ी पौराणिक कथाएँ
मकर संक्रांति के साथ कई पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस दिन असुरों का अंत करके पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की थी। इस उपलक्ष्य में मकर संक्रांति को बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व माना जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए मकर संक्रांति के दिन का चयन किया था। यह माना जाता है कि इस दिन मृत्यु होने पर व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए मकर संक्रांति का दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।
मकर संक्रांति का भौगोलिक महत्व
मकर संक्रांति का पर्व न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका भौगोलिक महत्व भी है। मकर संक्रांति से ही सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ता है, जिसे उत्तरायण कहते हैं। इस समय को आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसे देवताओं का दिन और मानव जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का समय माना गया है।
उत्तरायण काल को हिन्दू धर्म में देवताओं का दिन और दक्षिणायन काल को देवताओं की रात माना गया है। इस प्रकार मकर संक्रांति के दिन से उत्तरायण काल की शुरुआत होती है, जो जीवन में नए सवेरे और समृद्धि का प्रतीक है।
मकर संक्रांति के त्योहार की विविधता
मकर संक्रांति को भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। जैसे:
- उत्तर प्रदेश में इसे ‘खिचड़ी’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग खिचड़ी बनाते हैं और एक-दूसरे को खिलाते हैं।
- महाराष्ट्र में इसे ‘तिलगुल’ के रूप में मनाया जाता है। लोग तिल और गुड़ से बने लड्डू एक-दूसरे को भेंट करते हैं और ‘तिलगुल घ्या, गोड़ गोड़ बोला’ कहकर मिठास का प्रसार करते हैं।
- पंजाब में इस पर्व को ‘लोहड़ी’ के रूप में एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन लोग अग्नि जलाते हैं और उसमें तिल, गुड़, रेवड़ी, और मूँगफली चढ़ाते हैं।
- गुजरात में इसे ‘उत्तरायण’ कहते हैं। यहाँ मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है। पूरा आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है।
- तमिलनाडु में इसे ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है और मुख्य रूप से नई फसल की खुशी में मनाया जाता है।
- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे ‘पेद्दा पांडगा’ कहते हैं, और यहाँ लोग नदियों में स्नान करके देवताओं की पूजा करते हैं।
मकर संक्रांति का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
मकर संक्रांति का पर्व सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व नई फसल की कटाई का समय होता है, इसलिए इसे फसलों का त्योहार भी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों से मिलते हैं, एक-दूसरे को मिठाइयाँ बाँटते हैं और इस पर्व की खुशियाँ साझा करते हैं।
इस दिन विभिन्न प्रकार के मेलों का भी आयोजन होता है, जिनमें लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। उत्तर भारत में हरिद्वार, प्रयागराज, और वाराणसी जैसे पवित्र स्थलों पर बड़े मेलों का आयोजन होता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु स्नान और दान-पुण्य करने के लिए एकत्रित होते हैं।
दान-पुण्य का महत्व
मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन लोग दान करने से अपने पापों का नाश मानते हैं। तिल, गुड़, चावल, और वस्त्रों का दान विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन दान करने से व्यक्ति को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और उसे अपने जीवन में समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
मकर संक्रांति और पतंगबाजी
मकर संक्रांति के अवसर पर पतंगबाजी का भी विशेष महत्व है। इस दिन पूरे भारत में विशेष रूप से गुजरात, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश में पतंगबाजी का आयोजन किया जाता है। लोग अपने घरों की छतों पर जाकर पतंग उड़ाते हैं और एक-दूसरे की पतंग काटने का आनंद लेते हैं। पतंगबाजी इस पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो इस दिन को और भी खास बना देता है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति का पर्व भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। यह पर्व हमें जीवन में नई ऊर्जा, नई शुरुआत, और समृद्धि का संदेश देता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा, दान-पुण्य, और पतंगबाजी जैसी परंपराएँ हमें भारतीय संस्कृति और परंपराओं की धरोहर से जोड़ती हैं।
मकर संक्रांति का यह पर्व हमें जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति का संदेश देता है और हमें यह सिखाता है कि जैसे सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ता है, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। इस पर्व के माध्यम से हम अपने समाज में आपसी सद्भावना और भाईचारे की भावना को मजबूत कर सकते हैं।
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